Saturday 23 April 2011

अमर शहीद हरिकिशन मल

यह मृत्युंजयी महावीर भी एक तूफान थे
जो आया और अंग्रेजी राज्य को बुरी तरह झकझोर कर चला गया |


हरिकिशन का जन्म १९०९ में उत्तर -पश्चिमी सीमाप्रांत (अब नापकिस्तान ) के मरदान जिले में हुआ था | इनके पिता का नाम गुरुदास मल था |
हरिकिशन विद्यार्थी थे तभी से उनका संपर्क नौजवान भारत सभा(शहीद भगत सिंह द्वारा निर्मित ) से हो गया था ,खुदाई खिदमतगार आन्दोलन में भी हरिकिशन सक्रिय थे | सन १९३० के सविनय अवज्ञा आन्दोलन (जो गाँधी का ढोंग था) में भी शामिल थे (स्पष्ट रूप से गाँधी के दोमुहे चेहरे से अपरिचित थे ) |
कुछ दिनों से परिवार के लोगों को हरिकिशन कुछ बदले बदले से लग रहे थे ,उसके पिता ने उससे पूछताछ की तो पता चला की हरिकिशन ने पंजाब के आत्याचारी अंग्रेजी गवर्नर -सर ज्योफ्रे दा मोंत्मरेंसी के वध का उत्तरदायित्व अपने कन्धों पर लिया है | यह जानकार उनके पिता गंभीर हो गए और पिताजी में हरिकिशन से कहा -"हम पठान इलाके के निवासी हैं | पठान बहादुरी में बेमिसाल होते हैं | यदि तुम पीठ दिखाकर भाग आये या पुलिस की यातनाओं से टूटकर अपने साथियों के नाम बता दिए तो यह परिवार गद्दारों का परिवार कहलायेगा | तुम जो करने जा रहे हो उसका फल मृत्युदंड होगा यह तो तुम्हे मालूम ही HOGA |
हरिकिशन की आँखें चमक उठीं ,"पिताजी !,मैं आपका बेटा हूँ ! ,मैं भागूँगा नहीं | पुलिस इस देह की बोटी -बोटी काट दे ,तप भी मैं उफ़ नहीं करूँगा | "

तब अचूक निशानेबाज गुरुदास मल ने उत्साह से बेटे को निशाना लगाना सिखाया |
२३ दिसंबर १९३० को लाहौर में पंजाब विश्वविद्यालय का दीक्षांत समारोह हुआ | गवर्नर शान से मंच पर बैठा था | उपाधि पाने वालों और मेहमानों से हाल खचाखच भरा हुआ था ,उन्ही में हरिकिशन भी बैठे थे | उन्होंने शब्दकोष के पन्ने के भीतर पिस्तौल छिपा रखी थी | वोह समारोह की समाप्ति का उत्सुकता से प्रतीक्षा कर रहे थे |
आखिर समारोह समाप्त हुआ |
मझोले कद के दुबला-पतला हरिकिशन उठे और देखते देखते उन्होंने गवर्नर के शरीर में पांच गोलियां दाग दीं ,(गवर्नर घयाल तो हुआ किन्तु मरा नहीं ) ,इसके बाद हरिकिशन ने आत्मसमर्पण कर दिया |
पुलिस ने उन्हें अनेक यातनाएं दीं , किन्तु प्रत्येक आत्याचार के बाद बाद उनकी आत्मा अधिक फौलादी होती चली गयी ,वह कुछ नहीं बोले |
जज ने उन्हें चौदह -चौदह वर्ष के कारावास की दो सजाएँ और मृत्युदंड दिया | (जबकि गवर्नर मारा भी नहीं ,तब भी मृत्युदंड ,यह था अँगरेज़ सरकार का न्याय का ढोंग ) "जज साहब,मुझे फँसी पर लटकाने के बाद मेरी लाश को अट्ठाईस वर्ष जेल में रखा जायेगा या अट्ठाईस वर्ष जेल में रखने के बाद फांसी दे जाएगी "| हरिकिशन खिलखिला हंस पड़े |
९ जून १९३१ को मियांवाली जेल में फांसी चढ़ते समय ,उन्होंने जल्लाद और पुलिस को डांट दिया ,"खबरदार! मुझे छूना मत !" फिर उन्होंने फांसी के पहने को चूमा ,
"भारत माता की जय" तथा "इन्कलाब जिंदाबाद " और वन्देमातरम के नारे लगाए और अमर हो गए | उन वीर की इस वीरता को अँगरेज़ कैसे सहन करते ,उनकी मृत देह उनके घर वालों को नहीं दी गयी ,उनके शव को जेल के बहार ही जलाकर राख को नदी में बहा दिया गया |

सहसा ही यह वीरता देख देवगणों ने स्वर्ग से और साक्षात् त्रिदेव ने अपने अपने लोकों से हरिकिशन को आशीर्वाद दिया और कहा
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मृत्युंजयी भव!
मृत्युंजयी भव !
मृत्युंजयी भाव !

4 comments:

  1. प्रिय यश बहुत सुन्दर संकलन राष्ट्रवाद पर और कोशिश आप की ढेर सारी शुभ कामनाएं जागृत करो समाज को बिछड़े हुए से मिला कर -उनको मेरा भी नमन

    सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर५

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  2. नमस्कार,
    आपने ये तो बहुत ही अच्छा ब्लाग शुरु किया है, देश भक्ति की नई उम्मीद नजर आती है,
    इस देशभक्त को मेरा शत-शत नमन.

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  3. wow nice post I proud to be an Indian

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  4. mujhe harikishan mal ji par garv hai........but
    | सन १९३० के सविनय अवज्ञा आन्दोलन (जो गाँधी का ढोंग था) में भी शामिल थे (स्पष्ट रूप से गाँधी के दोमुहे चेहरे से अपरिचित थे )
    im not agreed with this comment!

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