Thursday 21 April 2011
जर्मन फ्रेंच सिखाने की आड़ में संस्कृति नष्ट करने का घोटाला जो सांस्कृतिक बात करे वो बंद दिमाग वाला ! वाह रे आधुनिकता वाह !
वाह रे आधुनिकता वाह ! अंग्रेजों को गए ६३ वर्ष हो गए लेकिन हम भारतियों के मन में आज भी यही झंडा फहरता है
क्रांतिवीरों ,अभी परसों मेरे स्कूल में जर्मन फ्रेंच सिखाने का दावा करने वाली कुछ टोली आई थी ,टोली के नायक थे एक इकबाल साहब ,स्पष्ट बात है अल्लाह मियां के बन्दे इक़बाल को हिन्दू संस्कृति का कोई मान हो तौबा तौबा ! आके झाड़ने लगे जेर्मन फ्रेंच की महानता के गुण , ये लोग बच्चों को ग्रीष्मावकाश में जेर्मन ,फ्रेंच आदि भाषा सिखाने आये थे ,इक़बाल मियां ने अर्ज़ किया की "भारतवासी सदा लेना जानते हैं देना नहीं ",वाह वाह ! इकबाल मियां इतिहास के कई पन्ने खा गए सुवर खाने के साथ , इनको पता नहीं होगा की इनका प्यारा नापकिस्तान जिसके लिए ये भारत की रोटी खा भारत से गद्दारी करते हैं उस पर जब बाढ़ आई तो भारत का ह्रदय द्रवित हो उठा और उसने सहायता की (येर बात अलग है की मुस्लिम भक्ति के चलते ऐसा हुआ ), भारत ने हर धर्म को शरण दी है इनके जाहिल पिस्स्लाम को भी क्या ये भारत की उदारता का परिचय नहीं की जो यहाँ का आया (यवनों और ईसाईयों के अलावा ) यहीं का हो गया , भारत के ऐसे बुरे दिन कदाचित ही आये हों जब उसे दुसरे देश से सहायता मांगनी पड़ी ,वरना हर देश की सहायता करने में भारत सबसे आगे रहता है , इक़बाल मियां ने आगे अर्ज़ किया "हम लोग विदेशियों का मुह ताकते थे " वाह सबसे बड़ा शर्मनाक झूठ ,भारत ने हर देश को कुछ न कुछ सदैव दिया है , बौद्ध धर्म भारत से अन्य देशों में गया ,यदि स्वामी विवेकानंद जी अमेरिका यदि न जाते तो अमेरिका आधुनिकता की आड़ में नष्ट हो जाता ,फिर एक सत्य यह भी है की अमेरिका से वो विज्ञानं भारत भूमि पर लाने गए थे और अमेरिका को आध्यात्म देने , स्वामी जी ने कहा था "यदि भारत का कल्याण चाहते हो तो भारत को चाहिए की अपने रत्न ले जा कर बहार के देशों की पृथ्वी पर समेत दें और दुसरे देश वाले जो कुछ भी दें उसे सहर्ष स्वीकार करें", और भारत ने ठीक ऐसा किया ,४० प्रतिशत वैज्ञानिक नासा के भारतीय हैं , भारत अमेरिका के रीढ़ की हड्डी है यदि भारत नहीं रहेगा तो अमेरिका का नामोनिशान नहीं , काश हम ये समझ पाते तो हमन इतने नपुंसक न होते की इक़बाल जैसे कुत्ते की बात यूँ ही सुन लेते ,यह तो हुई की भारत ने नैतिक मूल्य विश्व को क्या दिए ,अब यह जानिये की भारत का वेद आदि विज्ञानों का भण्डार था और विदेशियों ने इसे ही चुराया और अपने देश में ले जा कर इसे के आधार पर खोजें की और हमे हीन बताया ,यह मेरा दंभ नहीं ,कित्नु यह सत्य की भारत संसार के रीढ़ की हड्डी थी है और रहेगी |
छोडिये इसे इकबाल मियां ने आगे अर्ज़ किया की "यदि आप सब जर्मन फ्रेंच जान कर बहुराष्ट्रीय कंपनियों के एजेंट बनो गे तो आपको ही लाभ होगा "
देश द्रोह की शिक्षा खुले आम , वाह रे मेरे स्कूल प्रशासन धन्य है तू ,शर्म आती है मुझे ऐसे स्कूल का बच्चा होने में
मैंने सोचा की तर्कों से इनकी ईट से ईट बजा दूं ,किन्तु अन्दर यह डर बैठ गया की स्कूल में बवाल होगा और मुझे निकाल देंगे ,इस देशद्रोह को मैं चुप चाप सह गया तो ,इसलिए आप मुझ पापी को क्षमा कर दें
ऐसे ही मैंने स्कूल में एक बार हिंदुत्व का मुद्दा उठाया तो मेरे अध्यापक ने मुझे बंद दिमाग का कहा ,
वाह रे हिन्दुस्थान कन्नड़ ,पंजाबी आदि भारतीय भाषाएँ सिखाने का न इन कुत्तों के पास समय है न इन्हें यह आवश्यक लगता है ,इन्हें आधुनिकता के नाम पर अंग्रेजी का बढ़ावा चाहिए ,इन इक़बाल जैसे सुवर के पिल्लों को और हमारे खान्ग्रेसियों और बॉलीवुड को,यही कारण है की यदि हम दुसरे राज्य में नौकरी करते हैं तो हमे अंग्रेजी आनी चाहिए क्योकि केरल में रहने वाला हिंदी नहीं जानता और उत्तर प्रदेश में रहने वाला केरल नहीं जानता ,क्या हम अंग्रेजी को बढ़ावा देने के बजाय भारतीय भाषाओं को बढ़ावा न दें और हिंदी हर राज्य में आवश्यक कर दें ,चाहे लोक भाषा कोई क्यों न हो ,
और जब कोई भारतीय भारतीयता की बात करे तो वो सांप्रदायिक है ,आधुनिकता का दुश्मन है ,स्टोन एज का समर्थक है
इन परिस्थितयों को देख मुह से सहसा निकल पड़ता है
मेरा भारत महान !
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log German French isliye seekh rhe h coz they will get a good job/package there........aap india me jobs provide kijiye log hindi-sanskrit seekhna shuru kar denge!
ReplyDeleteएक इकबाल साहब ,स्पष्ट बात है अल्लाह मियां के बन्दे इक़बाल को हिन्दू संस्कृति का कोई मान हो तौबा तौबा !........mia desh jodne ki baatein kijiye, todne ki nhi!
ReplyDeleteआपका यहे सुझाव अच्छा लगा कि हमें अपने स्कूल में भारतीय भाषये सिखनी चाहिये।
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